मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

नमक सत्याग्रह और दांडी मार्च – गांधीजी का ऐतिहासिक आंदोलन | History Day IN


जानिए नमक सत्याग्रह और दांडी मार्च की पूरी कहानी – 1930 का वह ऐतिहासिक क्षण जब महात्मा गांधी ने नमक कानून तोड़कर भारत की आज़ादी की दिशा बदल दी।

परिचय

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई आंदोलन हुए जिन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत की नींव हिला दी। परंतु 1930 का नमक सत्याग्रह या दांडी मार्च वह आंदोलन था जिसने भारत की आत्मा को जगाया। यह केवल नमक के खिलाफ कर नहीं था — यह भारत की स्वाभिमान यात्रा का प्रतीक था।

नमक कानून की पृष्ठभूमि

अंग्रेज़ों ने भारत में नमक पर कर लगाकर एक बुनियादी वस्तु को भी अपने नियंत्रण में ले लिया था। गरीब और अमीर — हर भारतीय को इस कर का सामना करना पड़ता था। महात्मा गांधी ने महसूस किया कि नमक कर अन्यायपूर्ण और अमानवीय है।

दांडी मार्च की शुरुआत

12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) से महात्मा गांधी ने 78 साथियों के साथ 24 दिनों की पदयात्रा आरंभ की। लक्ष्य था – 240 मील (लगभग 385 किमी) दूर अरब सागर के तट पर स्थित दांडी गांव पहुँचना और वहां जाकर नमक बनाना।

इस यात्रा में उन्होंने अनेक गांवों से होकर गुजरते हुए लोगों से संवाद किया —

 “यह लड़ाई नमक की नहीं, बल्कि हमारे अधिकारों की है।”



मार्च का प्रभाव

6 अप्रैल 1930 को गांधीजी ने दांडी पहुंचकर समुद्र के किनारे से नमक उठाकर नमक कानून तोड़ा। यह दृश्य पूरे भारत में आशा की लहर बन गया। लाखों भारतीयों ने इस आंदोलन में भाग लिया।
महिलाएँ भी पहली बार बड़ी संख्या में शामिल हुईं — सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, कस्तूरबा गांधी जैसी महिलाओं ने नेतृत्व किया।

ब्रिटिश प्रतिक्रिया

अंग्रेजों ने इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की। हजारों सत्याग्रही गिरफ्तार हुए, स्वयं गांधीजी को भी जेल में डाल दिया गया। लेकिन अब आग भड़क चुकी थी — भारत के कोने-कोने में नमक सत्याग्रह फैल चुका था।

वैश्विक प्रतिक्रिया

दांडी मार्च की खबरें The New York Times से लेकर The Times of London तक में छपीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आज़ादी की आवाज़ बुलंद हुई।

नमक सत्याग्रह की विरासत

यह आंदोलन भारत की स्वतंत्रता यात्रा में निर्णायक मोड़ था। गांधीजी के अहिंसात्मक सत्याग्रह ने पूरी दुनिया को दिखाया कि बिना हिंसा के भी साम्राज्य को चुनौती दी जा सकती है।

आज भी दांडी मार्च हमें याद दिलाता है कि –

 “छोटे से छोटा कदम भी अगर सही दिशा में हो, तो इतिहास बदल सकता है।”


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गांधीजी की आत्मकथा जो बताती है कैसे एक नमक का कण भी स्वतंत्रता का प्रतीक बन सकता है।

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