शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन: 1942 की पुकार

महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन: 1942 की पुकार

प्रस्तावना

"अंग्रेजो भारत छोड़ो!" – यह नारा आज़ादी की लड़ाई की सबसे बुलंद आवाज़ों में से एक थी, जो 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में गूँजी थी। भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा निर्णायक मोड़ था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया। यह आंदोलन न केवल स्वतंत्रता के लिए जनसैलाब बना, बल्कि गांधी जी के "करो या मरो" के सिद्धांत ने पूरे देश को एकजुट कर दिया।


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आंदोलन की पृष्ठभूमि

भारत छोड़ो आंदोलन की नींव उस समय रखी गई थी जब भारत में द्वितीय विश्व युद्ध (1939–45) की वजह से असंतोष फैल रहा था। ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना किसी परामर्श के युद्ध में झोंक दिया था। इसके विरोध में कांग्रेस पार्टी ने कई बार आपत्ति जताई।

1939 में कांग्रेस मंत्रिमंडल का इस्तीफा: ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत की राय लिए बिना युद्ध में शामिल होने की घोषणा के विरोध में।

क्रिप्स मिशन (मार्च 1942): ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय नेताओं को कुछ आश्वासन दिए गए, परंतु यह मिशन असफल रहा। कांग्रेस को यह प्रस्ताव अस्वीकार्य लगा।


इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि अंग्रेज भारत को स्वतंत्रता देने के पक्ष में नहीं थे। इसी के जवाब में गांधी जी ने एक निर्णायक आंदोलन की रूपरेखा बनाई।


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भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत

8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक हुई। महात्मा गांधी ने यहां अपना ऐतिहासिक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा:

> “हम स्वतंत्रता की घोषणा करते हैं। यह हमारी अजेय इच्छा है... यह ‘करो या मरो’ का समय है!”



इस भाषण के तुरंत बाद गांधी जी और कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं को अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी भले ही नेतृत्व को जेल में डालने की कोशिश थी, लेकिन इससे आंदोलन की आग और भड़क उठी।


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आंदोलन का स्वरूप

गांधी जी ने तो अहिंसक संघर्ष का आह्वान किया था, परंतु ब्रिटिश दमन और नेताओं की गिरफ़्तारी के कारण आंदोलन कई जगहों पर उग्र रूप ले बैठा।

प्रमुख घटनाएं:

रेलवे स्टेशन, डाकघर, सरकारी भवनों पर हमले – जनता ने ब्रिटिश शासन के प्रतीकों को निशाना बनाया।

साबरमती आश्रम वर्धा से संदेश – गांधी जी का यह विचार कि स्वतंत्रता सत्य और अहिंसा से ही मिल सकती है, फिर भी जनता का रोष कई जगहों पर हिंसक रूप में फूट पड़ा।

कई युवा नेता सामने आए – राम मनोहर लोहिया, अरुणा आसफ़ अली, जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन को गति दी।



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अंग्रेजी शासन की प्रतिक्रिया

ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए बेहद कठोर कदम उठाए:

10,000 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी

सेंसरशिप और प्रेस पर प्रतिबंध

हजारों प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गईं

कई जगहों पर मार्शल लॉ लागू


इस दमनकारी नीति के बावजूद, भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव व्यापक और ऐतिहासिक था।


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महिलाएं और युवा: आंदोलन के नायक

इस आंदोलन में महिलाओं और युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

महिलाएं:

अरुणा आसफ़ अली: उन्होंने आंदोलन के दौरान बम विस्फोट और छापामारी से बचते हुए भूमिगत रहकर नेतृत्व किया।

उषा मेहता: उन्होंने गुप्त रेडियो स्टेशन "कांग्रेस रेडियो" की स्थापना की, जिससे आंदोलन की सूचना देशभर में फैली।


युवा:

जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे युवाओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन को दिशा दी। उन्होंने गुप्त पत्रक, पोस्टर, और हथियारों के माध्यम से अंग्रेजों को चुनौती दी।



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आंदोलन का प्रभाव

भारत में:

यह आंदोलन पूरे भारत में फैला। चाहे शहरी इलाके हों या ग्रामीण, हर जगह लोगों ने आज़ादी के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की।

यह पहली बार था जब आम जनता, किसान, मजदूर, महिलाएं, छात्र – सभी वर्गों ने स्वतंत्रता के लिए एकजुट होकर संघर्ष किया।


ब्रिटिश शासन पर:

अंग्रेजों को यह आभास हो गया कि भारत को अधिक समय तक गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता।

ब्रिटिश अर्थव्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध के चलते पहले ही कमजोर हो चुकी थी और भारत में असंतोष दिन-ब-दिन बढ़ रहा था।



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गांधी जी की भूमिका

हालाँकि गांधी जी को आंदोलन की शुरुआत में ही गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन उनकी विचारधारा और "करो या मरो" का नारा लोगों की प्रेरणा बन चुका था। उन्होंने कहा था:

 “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।”



गांधी जी ने जेल में रहकर भी सत्य, अहिंसा और आत्मबल पर भरोसा रखने की अपील जारी रखी। उनका विश्वास था कि अंग्रेज केवल जनता की सहमति से ही शासन कर रहे हैं, और यदि जनता असहयोग करे तो उन्हें जाना ही होगा।


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निष्कर्ष

भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक मोड़ था। यह आंदोलन यह दिखाने में सफल रहा कि अब भारत किसी भी कीमत पर अंग्रेजी शासन को बर्दाश्त नहीं करेगा।

हालांकि 1942 में भारत आज़ाद नहीं हुआ, लेकिन यह आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ। इसके बाद 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली – एक लंबा संघर्ष, जो गांधी जी की अहिंसा की नीति और जनता के बलिदानों से संभव हुआ।


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प्रेरणादायक वाक्य

 "करो या मरो" – सिर्फ एक नारा नहीं था, बल्कि आज़ादी के लिए अंतिम प्रण था।



 "भारत छोड़ो आंदोलन" – जब पूरी एक पीढ़ी ने अपनी स्वतंत्रता के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया।


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