सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

खिलाफत आंदोलन और महात्मा गांधी – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एकता का अध्याय


जानिए कैसे महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन को राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा और हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की। पढ़ें 1919–1924 के इस ऐतिहासिक आंदोलन की संपूर्ण कहानी।


परिचय:

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई आंदोलनों ने देश की आत्मा को झकझोरा, लेकिन उनमें से एक आंदोलन जिसने हिंदू-मुस्लिम एकता को नई दिशा दी — वह था खिलाफत आंदोलन। यह आंदोलन केवल धार्मिक भावना से प्रेरित नहीं था, बल्कि भारत के राजनीतिक भविष्य को भी गहराई से प्रभावित करने वाला सिद्ध हुआ।

महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के साथ जोड़कर एक ऐसी एकजुटता दिखाई, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी।

खिलाफत आंदोलन की पृष्ठभूमि:

1918 में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ। युद्ध के बाद ब्रिटेन और उसके सहयोगियों ने तुर्की (उस्मानी साम्राज्य) को पराजित किया। तुर्की के सुल्तान को “खलीफा” कहा जाता था, जो इस्लामिक जगत का धार्मिक प्रमुख माना जाता था।

जब ब्रिटेन ने तुर्की की भूमि बाँट दी और खलीफा की शक्ति छीन ली, तब भारतीय मुसलमानों में गहरा असंतोष फैल गया। उनका मानना था कि ब्रिटेन ने मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख का अपमान किया है।

खिलाफत आंदोलन की शुरुआत:

1919 में अली बंधु — मुहम्मद अली और शौकत अली — ने इस आंदोलन की नींव रखी।
उनका उद्देश्य था:

ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना कि वह तुर्की में खलीफा की सत्ता पुनर्स्थापित करे।

भारतीय मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं की रक्षा हो।

महात्मा गांधी की भूमिका:

महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलन से जोड़ने की ऐतिहासिक पहल की।
उनका मानना था कि:

“अगर भारत को स्वतंत्र करना है तो हिंदू-मुस्लिम एकता अनिवार्य है।”



इसलिए गांधीजी ने असहयोग आंदोलन (1920) को खिलाफत आंदोलन के साथ जोड़ा।
उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध शांतिपूर्ण असहयोग का संदेश दिया 

सरकारी स्कूलों का बहिष्कार

ब्रिटिश वस्त्रों का त्याग

सरकारी नौकरियों से इस्तीफ़ा

विदेशी वस्तुओं की होली

हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल:

गांधीजी और अली बंधुओं की एकजुटता ने पूरे देश में एक नई ऊर्जा भर दी।

मस्जिदों और मंदिरों से एक साथ आज़ादी के नारे उठने लगे।

लोगों ने अंग्रेज़ी शासन को नैतिक रूप से चुनौती दी।
यह वह दौर था जब “हिंदू-मुस्लिम एकता” अपने चरम पर थी।

चौरी-चौरा की घटना और आंदोलन का अंत:

1922 में चौरी-चौरा (उत्तर प्रदेश) में एक हिंसक घटना हुई जिसमें पुलिस थाने को जला दिया गया और 22 पुलिसकर्मी मारे गए।
गांधीजी ने कहा —

“हिंसा से कोई स्वतंत्रता नहीं मिल सकती।”
और उन्होंने तुरंत असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।



इससे खिलाफत आंदोलन भी कमजोर पड़ गया।
1924 तक यह आंदोलन समाप्त हो गया क्योंकि तुर्की में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने खिलाफत पद समाप्त कर दिया।

आंदोलन का ऐतिहासिक महत्व:

1. राष्ट्रीय एकता की भावना:
हिंदू-मुस्लिम एकता का सबसे बड़ा प्रतीक बना।


2. जन-आंदोलन की नींव:
पहली बार भारत में ग्रामीण जनता बड़े पैमाने पर आज़ादी के आंदोलन में शामिल हुई।


3. असहयोग की रणनीति:
गांधीजी की अहिंसा और सत्याग्रह नीति को जन-जन तक पहुँचाया।


4. राजनीतिक चेतना का उदय:
भारतीय जनता को अपने अधिकारों और शक्ति का एहसास हुआ।

निष्कर्ष:

खिलाफत आंदोलन भले ही धार्मिक मुद्दे से जुड़ा था, लेकिन गांधीजी ने उसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता की लड़ाई से जोड़कर भारतीय इतिहास में अमर कर दिया।
यह आंदोलन यह संदेश देता है कि धर्म, जाति या भाषा से ऊपर उठकर जब जनता एकजुट होती है, तब साम्राज्य भी हिल जाते हैं।

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