बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

बाजीराव पेशवा: मराठा साम्राज्य के विस्तार का स्वर्ण युग



बाजीराव पेशवा का शासन मराठा साम्राज्य के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है। जानिए कैसे उनकी युद्धनीति, नेतृत्व और विस्तारवादी दृष्टि ने भारत के इतिहास में मराठा शक्ति को चरम पर पहुँचाया।


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परिचय

भारतीय इतिहास में बाजीराव प्रथम पेशवा (1720–1740) को एक ऐसे वीर सेनापति के रूप में याद किया जाता है, जिसने मराठा साम्राज्य को भारत के उत्तर से दक्षिण तक फैला दिया। बाजीराव न केवल एक योद्धा थे, बल्कि एक दूरदर्शी रणनीतिकार और शिवाजी महाराज की विरासत के सच्चे संरक्षक भी थे।



प्रारंभिक जीवन

बाजीराव का जन्म 18 अगस्त 1700 को हुआ था। उनके पिता बालाजी विश्वनाथ पहले पेशवा थे, जिन्होंने मराठा प्रशासन को स्थिर किया। बचपन से ही बाजीराव ने युद्ध कला, अश्वारोहण और रणनीति की शिक्षा प्राप्त की।

उनकी प्रसिद्ध उक्ति –

 “जो थाली में खाता है, उसी में छेद नहीं करता।”
यह उनके चरित्र की ईमानदारी और राष्ट्रनिष्ठा को दर्शाती है।




पेशवा बनने की शुरुआत

सन् 1720 में पिता की मृत्यु के बाद, मात्र 20 वर्ष की आयु में बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया गया। उनकी युवा ऊर्जा और साहस ने मराठा राजनीति में नई जान फूंक दी।


मराठा साम्राज्य का विस्तार

बाजीराव ने मराठा शक्ति को केवल दक्षिण भारत तक सीमित नहीं रहने दिया। उन्होंने मध्य भारत, बंगाल, और उत्तर भारत तक अपनी सैन्य पहुंच बनाई।

प्रमुख अभियानों में शामिल हैं:

1. मालवा अभियान (1723) – मुगलों से मालवा पर अधिकार प्राप्त किया।


2. दिल्ली अभियान (1737) – मुगल दरबार के हृदय तक मराठा सेना पहुँची।


3. बुंदेलखंड अभियान – छत्रसाल बुंदेला की सहायता कर मराठा प्रभुत्व स्थापित किया।


4. गुजरात और बंगाल में प्रभाव – व्यापारिक मार्गों और कर संग्रह का नियंत्रण प्राप्त किया।



युद्धनीति और रणनीति

बाजीराव पेशवा की युद्ध शैली “गुरिल्ला टैक्टिक्स” से विकसित होकर “घोड़े पर युद्ध” (Cavalry Warfare) पर आधारित थी।
उन्होंने दुश्मनों को खुली लड़ाई में उलझाने की बजाय तेज़ी और आश्चर्य से घेर लिया।

उनकी रणनीति के तीन मुख्य स्तंभ:

गति (Speed)

आश्चर्य (Surprise)

मनोबल (Morale)



प्रेम कथा – मस्तानी के साथ

बाजीराव का नाम मस्तानी के साथ भी जुड़ा है। मस्तानी, बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की पुत्री थीं। दोनों के प्रेम ने समाज में विवाद भी खड़ा किया, पर उनकी निष्ठा और बलिदान ने इस कहानी को अमर बना दिया।


मृत्यु और विरासत

सन् 1740 में 40 वर्ष की आयु में बाजीराव की मृत्यु नर्मदा तट पर हुई। कहा जाता है कि अपने अंतिम समय में भी उन्होंने युद्ध की रणनीतियाँ बना रहे थे।

उनकी मृत्यु के बाद भी मराठा साम्राज्य की शक्ति कई दशकों तक बनी रही, और 18वीं सदी में भारत में मराठों का प्रभाव चरम पर था।


ऐतिहासिक महत्व

बाजीराव पेशवा ने यह सिद्ध किया कि भारत में कोई भी शक्ति हमेशा के लिए अजेय नहीं है। उन्होंने मुगल प्रभुत्व को कमजोर किया और मराठों को राष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।



निष्कर्ष

बाजीराव पेशवा भारतीय इतिहास के ऐसे सेनापति हैं जिनकी निष्ठा, नेतृत्व और युद्ध कौशल आज भी प्रेरणा देते हैं। उन्होंने भारत की एकता और आत्मसम्मान के लिए संघर्ष किया, और यही कारण है कि उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।



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