लचित बोरफुकन और अहोम साम्राज्य की वीरता की कहानी जानिए – कैसे असम के इस महान सेनानायक ने मुगलों की विशाल सेना को सरायघाट में हराया। भारत के गौरव की एक प्रेरक गाथा।
🕉️ भूमिका
भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम का इतिहास वीरता, आत्मसम्मान और राष्ट्र-रक्षा की अमर गाथाओं से भरा हुआ है। इन्हीं में से एक है अहोम साम्राज्य और उसके महान सेनानायक लचित बोरफुकन की कथा, जिन्होंने 17वीं शताब्दी में मुगलों की विशाल सेना को ब्रह्मपुत्र के किनारे पर पराजित किया।
⚔️ अहोम साम्राज्य का उदय
अहोम साम्राज्य की स्थापना 1228 ई. में सुकाफा नामक ताई-शान वंश के राजकुमार ने की थी।
सुकाफा ने असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में छोटे-छोटे जनजातीय राज्यों को एकजुट कर एक सशक्त साम्राज्य की नींव रखी।
अहोमों ने लगभग 600 वर्षों तक (1228–1826) असम पर शासन किया – यह भारत के सबसे लंबे राजवंशों में से एक है।
अहोम शासन की ख़ासियत थी –
मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था
स्थानीय जनता के प्रति संवेदनशील शासन
भूमि सुधार और जल प्रबंधन की नीतियाँ
कला, साहित्य और स्थापत्य का विकास
🏹 लचित बोरफुकन का प्रारंभिक जीवन
लचित बोरफुकन का जन्म लगभग 1622 में हुआ था। उनके पिता मुमाई तामुली बोरबरुआ अहोम साम्राज्य के एक प्रमुख अधिकारी थे।
लचित बचपन से ही तेज, अनुशासित और देशभक्त स्वभाव के थे। उन्होंने युद्धकला, घुड़सवारी और नौसैनिक रणनीतियाँ सीखीं। बाद में उन्हें बोरफुकन (सेनानायक) की उपाधि दी गई।
🌊 मुगलों के साथ संघर्ष
मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में मुगलों ने असम पर अधिकार करने का प्रयास किया। 1667 में लचित बोरफुकन ने मुगलों को गुवाहाटी से बाहर निकाल दिया, पर 1671 में फिर से मुगल सेनापति राम सिंह कछवाहा की विशाल सेना असम पर चढ़ाई करने आई।
🛶 सरायघाट का ऐतिहासिक युद्ध (1671)
यह युद्ध ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे सरायघाट में हुआ।
मुगलों के पास विशाल सेना, तोपें और हाथी थे, जबकि लचित के पास सीमित संसाधन थे।
लेकिन उन्होंने असम की नौसेना शक्ति और स्थानीय भूगोल की जानकारी का पूरा उपयोग किया।
जब उनके सैनिक थक गए और किला अधूरा रह गया, तो लचित ने अपने बीमार शरीर के बावजूद कहा:
“देश के लिए मैं मर सकता हूँ, पर पीछे नहीं हट सकता।”
और वे खुद नाव लेकर युद्ध में कूद पड़े। उनके इस साहस से असमियों का मनोबल बढ़ा और उन्होंने मुगलों को बुरी तरह हराया।
सरायघाट की विजय असम की स्वतंत्रता की पहचान बन गई।
⚖️ रणनीति और नेतृत्व की मिसाल
लचित बोरफुकन ने दिखाया कि केवल हथियारों से नहीं, बल्कि साहस, रणनीति और देशभक्ति से भी विजय प्राप्त की जा सकती है।
उनकी युद्ध-रणनीतियाँ आज भी भारतीय नौसेना और सेनाओं में अध्ययन का विषय हैं।
🌅 लचित की मृत्यु और विरासत
युद्ध के कुछ समय बाद लचित बोरफुकन बीमार पड़ गए और 1672 में उनका निधन हो गया।
पर उनकी वीरता आज भी असम के हर व्यक्ति के हृदय में जीवित है।
हर वर्ष 24 नवंबर को असम में “लचित दिवस” मनाया जाता है।
उनके नाम पर लचित बोरफुकन स्वर्ण पदक (गुवाहाटी में) दिया जाता है जो वीरता का प्रतीक है।
🪶 लचित बोरफुकन – भारतीय राष्ट्रवाद के प्रेरक
लचित की गाथा यह सिखाती है कि जब देश की बात हो, तो धर्म, भाषा या क्षेत्र नहीं, बल्कि मातृभूमि सर्वोपरि होती है।
उन्होंने असम को न केवल बचाया बल्कि आने वाली पीढ़ियों को स्वाभिमान का अर्थ सिखाया।
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