“छत्रपति शिवाजी महाराज और औरंगज़ेब का संघर्ष भारतीय इतिहास की सबसे प्रेरक कहानी है। पढ़ें कैसे शिवाजी ने स्वराज की ज्वाला से मुग़ल साम्राज्य को चुनौती दी।”
🔱 प्रस्तावना
भारतीय इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों में छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल बादशाह औरंगज़ेब का संघर्ष सबसे निर्णायक और प्रेरणादायक था। यह केवल दो व्यक्तियों का टकराव नहीं था, बल्कि यह दो विचारधाराओं का युद्ध था — एक ओर स्वतंत्रता और स्वराज की भावना, और दूसरी ओर सत्ता और विस्तार की लालसा।
⚔️ संघर्ष की पृष्ठभूमि
17वीं शताब्दी में जब मुग़ल साम्राज्य अपनी चरम सीमा पर था, दक्षिण भारत में मराठा शक्ति धीरे-धीरे उभर रही थी। शाहजी भोंसले के पुत्र शिवाजी ने पुणे, सतारा और आसपास के किलों से अपनी शक्ति बढ़ाई और स्थानीय जनता के दिलों में जगह बनाई।
शिवाजी का लक्ष्य था – “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे, आणि तो मी मिळवणारच।”
🏯 शिवाजी महाराज का उदय
शिवाजी ने 1646 में तोरना किला जीतकर अपने स्वतंत्र राज्य की नींव रखी। उन्होंने छापामार युद्ध नीति (गनिमी कावा) को अपनाकर मुग़ल और बीजापुरी सेनाओं को चकित कर दिया।
उनकी नीति थी — “छोटे पर तेज़ आक्रमण, त्वरित वापसी और जनता का संरक्षण।”
👑 औरंगज़ेब का विस्तारवादी दृष्टिकोण
औरंगज़ेब का उद्देश्य था पूरे भारत पर एकाधिकार स्थापित करना और इस्लामी शासन को मजबूत करना। दक्षिण भारत की ओर विस्तार करते समय शिवाजी महाराज उसकी सबसे बड़ी चुनौती बन गए।
औरंगज़ेब ने अपने सेनापति शाइस्ता ख़ान और बाद में मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा।
⚡ पुणे पर शाइस्ता खान का हमला
1663 में शाइस्ता खान ने पुणे पर कब्जा कर लिया। लेकिन शिवाजी महाराज ने रात में लाल महल में घुसकर उस पर साहसी आक्रमण किया और उसके हाथ की तीन उंगलियाँ काट दीं। यह घटना मराठा वीरता का प्रतीक बन गई।
📜 पुरंदर की संधि (1665)
जयसिंह के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने कई किले घेर लिए। शिवाजी को मजबूरी में पुरंदर की संधि करनी पड़ी, जिसके तहत उन्हें 23 किले मुग़लों को सौंपने पड़े और औरंगज़ेब से मिलने आगरा जाना पड़ा।
⛓️ आगरा का अपमान और पलायन
1666 में जब शिवाजी महाराज औरंगज़ेब से मिलने गए, उन्हें नजरबंद कर दिया गया।
लेकिन शिवाजी ने अपनी बुद्धिमानी से टोकरी में मिठाई और फल के रूप में छिपकर आगरा से भागने की योजना बनाई — जो भारतीय इतिहास की सबसे रोमांचक घटनाओं में से एक है।
🏹 पुनः संघर्ष और मराठा शक्ति का पुनर्जागरण
भागने के बाद शिवाजी ने अपनी सेना को पुनर्गठित किया और एक के बाद एक किले वापस जीत लिए। उन्होंने 1674 में रायगढ़ किले पर छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया और “हिंदवी स्वराज्य” की स्थापना की।
⚔️ औरंगज़ेब की हार और इतिहास का सबक
औरंगज़ेब ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों तक दक्षिण में मराठों से संघर्ष किया, लेकिन वह कभी शिवाजी की आत्मा को नहीं हरा सका।
1707 में उसकी मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य कमजोर हो गया, जबकि शिवाजी की स्थापित मराठा शक्ति आगे चलकर भारत की स्वतंत्रता की प्रेरणा बनी।
🌞 निष्कर्ष
शिवाजी महाराज और औरंगज़ेब का संघर्ष हमें यह सिखाता है कि “सत्ता से बड़ी होती है स्वराज्य की भावना।”
जहाँ औरंगज़ेब साम्राज्य बढ़ाने आया था, वहीं शिवाजी ने जनमानस में आत्मगौरव और स्वतंत्रता की ज्योति जलाई — जो सदियों तक बुझ नहीं सकी।
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