रविवार, 7 सितंबर 2025

जलियावाला बाग कांड पर जनक्रोध और महात्मा गांधी की ऐतिहासिक प्रतिक्रिया

1919 का जलियावाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का ऐसा काला अध्याय है जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। जानें कैसे इस जनसंहार ने भारत में जनक्रोध को जन्म दिया और गांधीजी ने कैसे असहयोग आंदोलन का बिगुल फूंका।


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प्रस्तावना

13 अप्रैल 1919, बैसाखी का दिन। पंजाब के अमृतसर स्थित जलियावाला बाग में हजारों निर्दोष लोग अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की आवाज़ उठाने के लिए एकत्र हुए थे। उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि कुछ ही देर बाद इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय लिखा जाएगा।

ब्रिगेडियर जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थी भीड़ पर गोलियां बरसा दीं। कुछ ही मिनटों में मैदान लाशों से पट गया। यह केवल एक जनसंहार नहीं था, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता का जीता-जागता प्रमाण था।

जलियावाला बाग कांड के कारण

1. रोलेट एक्ट 1919 – बिना मुकदमे के गिरफ्तारी का कानून।


2. ब्रिटिश दमनकारी नीति – पंजाब में राजनीतिक गतिविधियों पर रोक।


3. स्वतंत्रता की मांग – जनता अब और चुप रहने को तैयार नहीं थी।


कांड का प्रभाव – जनक्रोध का ज्वालामुखी

अमृतसर से लेकर पूरे भारत में मातम और गुस्सा छा गया।

ब्रिटिश शासन की असली क्रूरता खुलकर सामने आई।

आम भारतीयों के मन में स्वतंत्रता के लिए बलिदान की ज्वाला प्रज्वलित हुई।

गांधीजी की प्रतिक्रिया

महात्मा गांधी ने इस घटना को स्वतंत्रता संग्राम का निर्णायक मोड़ बताया।

उन्होंने ब्रिटिश सरकार से क्षमायाचना और न्याय की मांग की।

1920 में असहयोग आंदोलन की घोषणा की, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन जनांदोलन में बदल गया।

गांधीजी ने कहा – “यह दिन हमें हमेशा याद दिलाएगा कि आज़ादी बिना संघर्ष के नहीं मिलेगी।”


ऐतिहासिक परिणाम

1. ब्रिटेन और विश्वभर में इस नरसंहार की निंदा हुई।


2. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा मिली।


3. गांधी, नेहरू, भगत सिंह जैसे नेताओं ने ब्रिटिश शासन उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया।

निष्कर्ष

जलियावाला बाग कांड केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का Turning Point था। जनक्रोध ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी और गांधीजी की नेतृत्व क्षमता ने आंदोलन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

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