गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

1991 आर्थिक सुधार और उदारीकरण का दौर


1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नए युग में प्रवेश दिलाया। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) नीतियों ने कैसे देश की आर्थिक दिशा बदली? इस 1000+ शब्दों की विस्तृत ब्लॉग पोस्ट में जानिए पूरा इतिहास, प्रभाव और आधुनिक भारत पर इसका असर।


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 प्रस्तावना: 1991 – वह साल जिसने भारत बदल दिया

साल 1991 भारत के आर्थिक इतिहास में एक मोड़ की तरह दर्ज है।
यह वह समय था जब देश गहरी आर्थिक संकट, बढ़ते कर्ज, विदेशी मुद्रा की कमी और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था। इस चुनौतीपूर्ण समय में भारत ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया — आर्थिक उदारीकरण (LPG Reforms)।

प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किए गए इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को न केवल संकट से बाहर निकाला, बल्कि भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़कर एक नए विकास मार्ग पर आगे बढ़ाया।



पृष्ठभूमि: 1991 में आर्थिक संकट की असली तस्वीर

1991 में भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक थी:

विदेशी मुद्रा भंडार केवल 2 सप्ताह के आयात को पूरा करने लायक बचा था।

देश भारी राजकोषीय घाटे से जूझ रहा था।

सरकारी क्षेत्र (PSUs) में घाटा और अक्षमता हावी थी।

आयात और व्यापार पर कठोर नियंत्रणों ने विकास रोक दिया था।

वैश्विक बाजार से लगभग कटे हुए होने के कारण देश प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा था।


इस गंभीर संकट से निकलने के लिए बड़े और साहसी फैसलों की जरूरत थी — और यहीं से शुरू होती है 1991 की LPG कहानी।



 LPG मॉडल — उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण

 Liberalization (उदारीकरण)

उदारीकरण का अर्थ था —
सरकार द्वारा लगाए गए नियंत्रणों और लाइसेंस राज को हटाना।

मुख्य परिवर्तन:

लाइसेंस राज में कमी

उद्योग खोलने की प्रक्रिया आसान

विदेशी निवेश और तकनीक के लिए रास्ते खुले

व्यापार बाधाओं में कमी


 Privatization (निजीकरण)

निजी क्षेत्र को अधिक भूमिका देने के लिए:

घाटे में चल रहे PSUs का निजीकरण

प्राइवेट कंपनियों को विदेशी साझेदारी की अनुमति

बैंकिंग, टेलीकॉम, एयरलाइंस जैसे क्षेत्रों में निजी भागीदारी


 Globalization (वैश्वीकरण)

भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ना:

विदेशी कंपनियों के लिए बाज़ार खोलना

निर्यात को बढ़ावा

विदेशी मुद्रा निवेश (FDI/FII) को प्रोत्साहन

आयात शुल्क में कमी



 1991 सुधारों के प्रमुख फैसले

✔ रुपए का आंशिक अवमूल्यन
✔ आयात-निर्यात प्रक्रिया सरल
✔ विदेशी निवेश की सीमा 51% तक बढ़ाई
✔ निजी कंपनियों को कई क्षेत्रों में प्रवेश
✔ नई औद्योगिक नीति, 1991 लागू
✔ वित्तीय क्षेत्र में सुधार (Narasimham Committee)


 भारत पर 1991 के सुधारों का प्रभाव

1. तेज आर्थिक विकास

GDP Growth में बड़ा उछाल आया।
1991 से 2000 तक विकास दर 3% से बढ़कर 6%+ रही।

2. विदेशी निवेश में वृद्धि

FDI-FII बढ़े और भारतीय उद्योगों को वैश्विक तकनीक और पूंजी मिली।

 3. आईटी और सेवाओं का उभार

Infosys, Wipro, TCS जैसे IT दिग्गजों का विस्तार तेज हुआ।
BPO इंडस्ट्री ने लाखों नौकरियाँ पैदा कीं।

 4. ग्लोबल मार्केट में भारत की स्थिति मजबूत हुई

भारत दुनिया की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ।

 5. उपभोक्ता बाजार का विस्तार

उदारीकरण के बाद भारतीय बाज़ार में:
मोबाइल फोन, टीवी, कंप्यूटर, कार, इंटरनेट – तेजी से आम हुए।

 6. मध्य वर्ग का विस्तार

नई नौकरियों और कंपनियों ने भारत में एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग बनाया।




 आलोचनाएँ और चुनौतियाँ

हर नीति के कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू होते हैं:

अमीर और गरीब के बीच आर्थिक असमानता बढ़ी।

कृषि क्षेत्र को उतना लाभ नहीं मिला।

बड़े कॉर्पोरेट हाउस अधिक शक्तिशाली हुए।


फिर भी, अधिकांश अर्थशास्त्रियों की नज़र में 1991 के सुधार आधुनिक भारत की नींव माने जाते हैं।


 निष्कर्ष: 1991 – भारत की आर्थिक स्वतंत्रता

यदि 1947 भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता थी,
तो 1991 भारत की आर्थिक स्वतंत्रता कहा जा सकता है।

उदारीकरण ने भारत को एक बंद अर्थव्यवस्था से बदलकर
खुले, गतिशील और वैश्विक मंच पर लाकर खड़ा किया।
आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में है—
यह कहानी 1991 से ही शुरू हुई थी।



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