इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए 1975 के आपातकाल का पूरा इतिहास पढ़ें — कारण, प्रभाव, नेताओं की गिरफ्तारी और लोकतंत्र पर असर।
📜 परिचय:
25 जून 1975 की रात, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा अध्याय जुड़ा जिसने पूरे देश को हिला दिया — आपातकाल (Emergency)। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देशभर में आपातकाल की घोषणा की। इसका प्रभाव राजनीति, मीडिया, और आम जनता – सभी पर पड़ा।
🇮🇳 आपातकाल क्या था?
आपातकाल का मतलब है — जब देश की आंतरिक या बाहरी सुरक्षा को खतरा हो, तब सरकार को विशेष शक्तियाँ मिल जाती हैं।
25 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक भारत में 21 महीनों तक आपातकाल लागू रहा।
⚖️ आपातकाल की पृष्ठभूमि:
1971 में इंदिरा गांधी ने “गरीबी हटाओ” नारे के साथ चुनाव जीता, लेकिन 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनावी अनियमितताओं के कारण उनका चुनाव रद्द कर दिया।
विपक्षी नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने देशभर में “संपूर्ण क्रांति आंदोलन” शुरू किया।
राजनीतिक दबाव बढ़ने पर इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से अनुच्छेद 352 लागू करने की सिफारिश की।
🚨 आपातकाल के दौरान प्रमुख घटनाएँ:
1. विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी:
जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, एल.के. आडवाणी सहित हजारों राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए।
2. मीडिया पर सेंसरशिप:
अख़बारों पर सरकारी नियंत्रण लगाया गया। "इंडियन एक्सप्रेस" और "स्टेट्समैन" जैसे अख़बारों ने काले बॉक्स छापकर विरोध जताया।
3. नसबंदी अभियान:
संजय गांधी ने परिवार नियोजन अभियान चलाया, जिसमें जबरन नसबंदी की घटनाएँ हुईं।
4. संविधान संशोधन:
42वाँ संशोधन पारित हुआ, जिससे प्रधानमंत्री की शक्तियाँ और बढ़ीं।
🧭 जनता की प्रतिक्रिया:
जनता में भय और असंतोष फैल गया। बोलने की आज़ादी सीमित हो गई, और मीडिया की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई। लेकिन सरकारी प्रचार में इसे “अनुशासन पर्व” कहा गया।
📉 आपातकाल का अंत:
1977 में इंदिरा गांधी ने अचानक चुनाव की घोषणा की।
जनता पार्टी ने भारी जीत हासिल की, और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
यह भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा थी — जहाँ जनता ने अपने वोट से जवाब दिया।
🔍 आपातकाल से मिली सीख:
लोकतंत्र में सत्ता से बड़ा संविधान और जनता की शक्ति होती है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है।
संविधान में संतुलन बनाना जरूरी है ताकि कोई भी नेता निरंकुश न बने।
📚 निष्कर्ष:
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र की चेतावनी है कि सत्ता चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, जनता की आवाज़ सबसे बड़ी होती है।
इंदिरा गांधी ने बाद में इस निर्णय को अपनी "राजनीतिक भूल" माना।
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