गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन, सिख धर्म में उनका योगदान और खालसा पंथ की स्थापना की ऐतिहासिक कहानी जानें। पढ़ें 17वीं सदी के इस महान योद्धा-संत का प्रेरक इतिहास।
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प्रस्तावना
भारत के महान संत, योद्धा और कवि गुरु गोविंद सिंह जी (1666–1708) सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे। उनका जन्म बिहार के पटना साहिब में हुआ और उनका जीवन सिख इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। उन्होंने सिर्फ धर्म की रक्षा नहीं की, बल्कि अत्याचार के खिलाफ खड़े होकर स्वतंत्रता और समानता की अद्भुत मिसाल पेश की।
प्रारंभिक जीवन
गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर हुआ। बचपन से ही उनमें आध्यात्मिकता और शौर्य दोनों का संगम दिखता था।
खालसा पंथ की स्थापना
13 अप्रैल 1699 को बैसाखी के दिन गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने पाँच प्यारों को अमृत पिलाकर धर्म, साहस और न्याय की नई परंपरा शुरू की। यह क्षण सिख धर्म में एक नया युग लेकर आया।
वीरता और संघर्ष
औरंगज़ेब के जुल्मों के खिलाफ गुरु गोविंद सिंह ने संघर्ष किया। अपने चारों बेटों (साहिबज़ादों) की शहादत के बावजूद वे कभी पीछे नहीं हटे। उनका जीवन न्याय, बलिदान और अटूट विश्वास का प्रतीक है।
साहित्य और कवित्व
वे न केवल योद्धा थे बल्कि उच्च कोटि के कवि और दार्शनिक भी थे। दशम ग्रंथ उनकी साहित्यिक प्रतिभा का अद्भुत उदाहरण है।
संदेश
गुरु गोविंद सिंह का संदेश स्पष्ट था – “मनुष्य को निडर रहकर धर्म और सत्य की रक्षा करनी चाहिए।”
आज का महत्व
आज भी उनकी शिक्षाएँ मानवता, समानता और साहस का संदेश देती हैं। खालसा पंथ की परंपरा दुनियाभर में सिखों की पहचान का गर्व है।
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