गुरुवार, 3 जुलाई 2025

पुष्यमित्र शुंग का शासन (185 ई.पू. - 149 ई.पू.)



🏹 पुष्यमित्र शुंग का शासन (185 ई.पू. - 149 ई.पू.)

भारत का एक अद्वितीय मोड़

भारत का इतिहास अनेक वीरों और शक्तिशाली सम्राटों से भरा हुआ है। मौर्य वंश के बाद जिस शासक ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को पुनः संगठित किया, वह था पुष्यमित्र शुंग। यह वही व्यक्ति था जिसने मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की थी। पुष्यमित्र का शासनकाल भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय लेकर आया।


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🏛 पृष्ठभूमि: मौर्य साम्राज्य का पतन

मौर्य साम्राज्य की नींव चंद्रगुप्त मौर्य ने रखी थी और उसका उत्कर्ष अशोक महान के काल में हुआ। परंतु अशोक के पश्चात उत्तराधिकारियों में वह शक्ति और संगठन नहीं रहा, जिससे साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होता गया। अशोक के बाद बृहद्रथ मौर्य अंतिम शासक बने, परंतु वे केवल नाममात्र के राजा थे। इसी समय साम्राज्य का सेनापति पुष्यमित्र शुंग सत्ता के केंद्र में आया।


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🔪 सत्ता परिवर्तन: बृहद्रथ की हत्या

185 ईसा पूर्व, पुष्यमित्र शुंग ने एक सैन्य परेड के दौरान बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर दी और स्वयं को सम्राट घोषित किया। इस घटना को कुछ इतिहासकार "षड्यंत्र", तो कुछ "आवश्यक परिवर्तन" मानते हैं। यह पहला ऐसा ऐतिहासिक उदाहरण है, जब सेनापति ने सम्राट को हटाकर स्वयं सत्ता संभाली।


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🏯 शुंग वंश की स्थापना

पुष्यमित्र शुंग ने सत्ता में आने के बाद शुंग वंश की स्थापना की, जो लगभग 100 वर्षों तक चला। इस वंश का प्रारंभिक केंद्र पाटलिपुत्र था, बाद में राजधानी को विदिशा या काशी स्थानांतरित किया गया। शुंग वंश ने मौर्य प्रशासनिक ढांचे को कुछ हद तक बनाए रखा, परंतु धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से कई परिवर्तन हुए।


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🛡 सैन्य उपलब्धियां

पुष्यमित्र न केवल एक सक्षम प्रशासक था, बल्कि एक वीर योद्धा और सेनापति भी था। उसने कई विदेशी आक्रमणों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया:

1. यवनों (Indo-Greeks) से संघर्ष

यवन शासक मेनांडर (मिलिंद) ने भारत पर आक्रमण किया था, पर पुष्यमित्र की सेना ने उसे पराजित किया। यह एक महत्वपूर्ण विजय थी जिसने उत्तर-पश्चिम भारत को विदेशी नियंत्रण से बचाया।

2. शकों और पार्थियों से रक्षा

शकों और पार्थियों के आक्रमण भी इस काल में हुए, परंतु पुष्यमित्र ने अपनी सीमाओं की रक्षा करते हुए उन्हें देश में गहराई तक प्रवेश नहीं करने दिया।


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🕉 धार्मिक नीति और संस्कृति

1. ब्राह्मणवाद का पुनरुत्थान

पुष्यमित्र शुंग एक कट्टर ब्राह्मण था। उसने वैदिक धर्म और ब्राह्मणवादी परंपराओं का पुनः उत्थान किया। कहा जाता है कि उसने अशोक काल में कमजोर हुए यज्ञों और वेद-पाठ को पुनः प्रचलित किया।

2. बौद्ध धर्म से दूरी

कुछ बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का विरोधी बताया गया है। 'दिव्यावदान' के अनुसार उसने बौद्ध विहारों को नष्ट किया और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की। परंतु यह मत विवादास्पद है, क्योंकि बौद्ध धर्म पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ, और बाद के शुंग शासकों ने बौद्ध कलाकृतियों को संरक्षण भी दिया।


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🛕 कला और स्थापत्य

पुष्यमित्र के शासनकाल में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत हुई। इस काल में:

स्तूपों का पुनर्निर्माण (विशेषकर सांची स्तूप)

वैदिक अनुष्ठानों की वापसी

संस्कृत साहित्य और धर्मशास्त्र का संरक्षण


यह स्पष्ट है कि यद्यपि शासन ब्राह्मणवादी था, फिर भी कला और संस्कृति को काफी बढ़ावा मिला।


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📜 प्रशासन और शासन प्रणाली

पुष्यमित्र ने मौर्य काल की केन्द्रीय प्रशासनिक व्यवस्था को कुछ हद तक बनाए रखा, परंतु उसने राजनीतिक विकेंद्रीकरण की ओर भी कदम उठाए। उसने अपने पुत्र अग्निमित्र को विदिशा का शासक बनाया, जो आगे चलकर सम्राट बना।

उसका शासन राज्य की एकता, धार्मिक शक्ति, और सैन्य दृढ़ता पर आधारित था।


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🧬 उत्तराधिकार और मृत्यु

पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु लगभग 149 ई.पू. में हुई। उसके बाद उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग शासक बना। अग्निमित्र का उल्लेख कालिदास की रचना 'मालविकाग्निमित्रम्' में भी मिलता है। इससे पुष्यमित्र के बाद शुंग साम्राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि की झलक मिलती है।


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🔚 निष्कर्ष: पुष्यमित्र का ऐतिहासिक महत्व

पुष्यमित्र शुंग एक ऐसा शासक था जिसने भारत को एक बार फिर राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थायित्व दिया। उसने विदेशी आक्रमणों से रक्षा की, वैदिक परंपराओं का पुनरुद्धार किया और एक नए युग की शुरुआत की।

👉 यद्यपि उसकी धार्मिक नीति आलोचना का विषय रही है, परंतु उसकी राजनीतिक सूझबूझ, सैन्य नेतृत्व, और प्रशासनिक क्षमता भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।


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📚 स्रोत सुझाव (अध्ययन के लिए):




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