7 जनवरी 1922 को चौरी चौरा कांड से संबंधित मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, क्योंकि इसने महात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन वापस लेने के लिए मजबूर किया।
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चौरी चौरा कांड की पृष्ठभूमि:
4 फरवरी 1922 को, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा कस्बे में अंग्रेजी शासन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों और पुलिस के बीच झड़प हुई।
किसानों का यह प्रदर्शन महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन का हिस्सा था।
प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसके जवाब में भीड़ ने चौरी चौरा पुलिस स्टेशन को आग के हवाले कर दिया।
इस घटना में 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई।
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मुकदमे की शुरुआत:
घटना के बाद, ब्रिटिश सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष अदालत गठित की।
7 जनवरी 1922 को, आरोपियों पर मुकदमे की कार्यवाही शुरू हुई।
कुल 225 लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन पर हत्या और विद्रोह के आरोप लगाए गए।
मुकदमे की सुनवाई जिला सत्र न्यायालय में हुई।
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फैसला और सजा:
19 अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई गई।
कई अन्य को लंबी कारावास की सजा दी गई।
महात्मा गांधी ने हिंसा की निंदा की और इस घटना को "नैतिक हार" करार दिया।
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महत्व और प्रभाव:
1. असहयोग आंदोलन का अंत:
चौरी चौरा कांड के कारण गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, क्योंकि वह अहिंसा के सिद्धांत के प्रति प्रतिबद्ध थे।
2. राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रभाव:
यह घटना स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनता में बढ़ते आक्रोश और हिंसा की ओर बढ़ते रुझान को दर्शाती है।
3. कानूनी कार्यवाही:
इस मुकदमे ने दिखाया कि ब्रिटिश सरकार भारतीय जनता के विरोधों को कितनी गंभीरता से ले रही थी।
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चौरी चौरा कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक यादगार घटना है, जिसने आंदोलन की रणनीति और भविष्य की दिशा पर गहरा प्रभाव डाला।
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