रुक्मिणी देवी अरुंडेल का जन्म 29 फरवरी 1904 को मदुरै (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) में हुआ था। हालाँकि, उनका जन्मदिन अक्सर 7 जनवरी को मनाया जाता है, जो भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण और कला के क्षेत्र में उनके योगदान का सम्मान करने का एक तरीका है।
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परिचय:
रुक्मिणी देवी अरुंडेल एक प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना, कला संरक्षक और सामाजिक सुधारक थीं।
उन्होंने भरतनाट्यम को एक नृत्य रूप के रूप में पुनर्जीवित किया और इसे शास्त्रीय और प्रतिष्ठित मंच पर स्थापित किया।
वह भारतीय संस्कृति और परंपराओं को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं।
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जीवन और उपलब्धियां:
1. भरतनाट्यम का पुनरुद्धार:
रुक्मिणी देवी ने भरतनाट्यम को इसके मूल मंदिर प्रदर्शन से बाहर लाकर मंचीय प्रदर्शन की गरिमा दी।
उन्होंने इसे एक शास्त्रीय नृत्य रूप के रूप में प्रतिष्ठित किया, जिसे उस समय निचली जातियों और देवदासी परंपरा से जोड़ा जाता था।
उन्होंने इस नृत्य में प्राचीन कथाओं, धार्मिक भावना, और सौंदर्यशास्त्र को जोड़कर इसे नया जीवन दिया।
2. कला और शिक्षा में योगदान:
उन्होंने 1936 में कलाक्षेत्र फाउंडेशन की स्थापना की, जो एक अग्रणी कला संस्थान है।
यह संस्थान शास्त्रीय नृत्य, संगीत, और भारतीय परंपराओं के अध्ययन और प्रशिक्षण का केंद्र बन गया।
3. अंतरराष्ट्रीय ख्याति:
रुक्मिणी देवी ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया।
उन्होंने विभिन्न देशों में प्रदर्शन किए और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।
4. पशु अधिकार और सामाजिक सुधार:
वह पशु कल्याण की समर्थक थीं और उन्होंने भारतीय पशु कल्याण आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
वह राज्यसभा की सदस्य भी रहीं और सामाजिक सुधारों में सक्रिय भूमिका निभाई।
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सम्मान और विरासत:
उन्हें पद्म भूषण (1956) से सम्मानित किया गया।
रुक्मिणी देवी भारतीय नारी के सशक्त और प्रगतिशील स्वरूप की प्रतीक मानी जाती हैं।
उनके नृत्य और सामाजिक कार्यों ने उन्हें भारतीय संस्कृति और कला का अग्रदूत बना दिया।
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रुक्मिणी देवी अरुंडेल का जीवन भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण और प्रसार के प्रति समर्पित था। उनका योगदान आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
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