1908 में बाल गंगाधर तिलक की गिरफ़्तारी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अहम मोड़ था। तिलक, जो "लोकमान्य" के नाम से विख्यात थे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता और क्रांतिकारी विचारधारा के समर्थक थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता में जागरूकता और विरोध की भावना को प्रज्वलित किया।
गिरफ़्तारी का कारण:
तिलक ने केसरी अखबार में ब्रिटिश शासन की नीतियों की कड़ी आलोचना की थी। 1908 में मुठ्ठीगांव बम कांड (अलीपुर बम केस) के बाद उन्होंने अपने लेख में क्रांतिकारी गतिविधियों का समर्थन किया और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति तीखा विरोध जताया। ब्रिटिश सरकार ने इसे राजद्रोह माना और उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124A और 153A के तहत मुकदमा चलाया।
मुकदमा और सजा:
तिलक पर मुंबई की अदालत में मुकदमा चला। उनके तर्कपूर्ण और ओजस्वी भाषणों ने जनता को प्रभावित किया, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें दोषी ठहराते हुए छह साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। उन्हें 1908 से 1914 तक बर्मा (अब म्यांमार) के मांडले जेल में कैद रखा गया।
प्रभाव:
तिलक की गिरफ़्तारी से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गहरा झटका लगा, लेकिन उनके त्याग और संघर्ष ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया। जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "गीता रहस्य" लिखी, जिसमें उन्होंने कर्मयोग का संदेश दिया।
यह घटना तिलक के क्रांतिकारी विचारों और उनकी अदम्य साहस की गवाही देती है। तिलक का नारा, "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा," भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मंत्र बन गया।
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