न्यायमूर्ति मोहम्मद हिदायतुल्लाह भारत के न्यायिक और संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। 19 दिसंबर 1992 को उनकी मृत्यु हुई।
हिदायतुल्लाह का जीवन परिचय
जन्म: 17 दिसंबर 1905, रानीखेड़ा (मध्य प्रदेश)।
वे एक प्रख्यात न्यायविद, लेखक और संविधान विशेषज्ञ थे।
उन्होंने कानून की पढ़ाई ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से की थी और अपने समय के सबसे कुशल न्यायाधीशों में से एक माने जाते थे।
प्रमुख उपलब्धियां
1. भारत के 11वें मुख्य न्यायाधीश (1968-1970):
न्यायपालिका में उनका कार्यकाल निष्पक्षता और न्याय के उच्चतम मानकों के लिए प्रसिद्ध है।
उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेदों की व्याख्या में अहम भूमिका निभाई।
2. भारत के 6वें उपराष्ट्रपति (1979-1984):
उन्होंने उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय संसद को कुशलतापूर्वक चलाया।
3. कार्यवाहक राष्ट्रपति (1969):
भारत के पहले व्यक्ति जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश, उपराष्ट्रपति, और कार्यवाहक राष्ट्रपति के पदों पर कार्य किया।
वे 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे, जब डॉ. जाकिर हुसैन के निधन के बाद यह पद खाली हुआ था।
4. संवैधानिक मामलों में योगदान:
न्यायिक स्वतंत्रता के पक्षधर, उन्होंने अपने फैसलों में संविधान को सर्वोच्च स्थान दिया।
उनके निर्णय भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका को मजबूत बनाने वाले साबित हुए।
पुस्तकें और लेखन:
हिदायतुल्लाह एक कुशल लेखक भी थे। उन्होंने भारतीय कानून और संविधान पर कई पुस्तकें लिखीं।
उनके लेख न्याय और कानून की गहरी समझ के लिए प्रेरणादायक माने जाते हैं।
मृत्यु और विरासत
मृत्यु: 19 दिसंबर 1992
उनकी मृत्यु के बाद भी, उनके द्वारा स्थापित न्यायिक और संवैधानिक मानदंड आज भी प्रेरणा देते हैं।
उन्हें भारतीय न्यायपालिका के सबसे महान स्तंभों में से एक माना जाता है।
न्यायमूर्ति मोहम्मद हिदायतुल्लाह का जीवन न्याय और संविधान के प्रति समर्पण का प्रतीक था। उनकी पुण्यतिथि हमें उनके योगदानों को याद करने और भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देती है।
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