बहमनी सल्तनत और दक्कन की राजनीति – जानिए कैसे हसन बहमन शाह ने दक्षिण भारत में एक सशक्त राज्य की नींव रखी। इतिहास, संस्कृति और स्थापत्य की यह कहानी भारत के गौरवशाली मध्यकाल का प्रतीक है।
🪶 परिचय
भारत के मध्यकालीन इतिहास में दक्कन क्षेत्र (आज का महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश) ने एक अद्वितीय राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान बनाई। 14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की कमजोरी के बाद यहाँ उभरी बहमनी सल्तनत ने दक्षिण भारत की राजनीति को नया मोड़ दिया।
यह सल्तनत न केवल मुस्लिम शासन का प्रतीक थी, बल्कि हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक समन्वय का भी केंद्र बनी।
🏙️ बहमनी सल्तनत की स्थापना (1347 ई.)
बहमनी सल्तनत की स्थापना अला-उद-दीन हसन बहमन शाह ने 1347 ईस्वी में की।
इसकी राजधानी पहले गुलबर्गा (आहसनाबाद) और बाद में बीदर बनाई गई।
सल्तनत की स्थापना का उद्देश्य था — दिल्ली सल्तनत से दक्कन को स्वतंत्र कर एक मजबूत क्षेत्रीय सत्ता का निर्माण।
👉 मुख्य संस्थापक: हसन गंगू बहमन शाह
👉 राजधानी: गुलबर्गा → बीदर
👉 राज्य भाषा: फारसी (परंतु स्थानीय भाषाओं को भी महत्व मिला)
👉 प्रमुख धर्म: इस्लाम, किंतु हिंदू प्रशासनिक अधिकारियों को भी सम्मान प्राप्त था।
⚔️ दक्कन की राजनीति और बहमनी शासन
बहमनी सल्तनत के शासनकाल में दक्कन की राजनीति दिल्ली से स्वतंत्र होकर विकसित हुई।
राज्य की सीमा उत्तर में नर्मदा नदी से लेकर दक्षिण में कृष्णा-गोदावरी घाटी तक फैली थी।
बहमनी शासक चार मुख्य वर्गों के बीच सत्ता संतुलन बनाए रखते थे:
1. दक्कनी (स्थानीय मुसलमान)
2. अफाकी (विदेशी मुसलमान, जैसे ईरान और तुर्की से आए)
3. हिंदू जमींदार और अधिकारी
4. सैन्य सरदार (अमीर और मलिक)
इन वर्गों के बीच प्रतिस्पर्धा ने आगे चलकर सल्तनत को पाँच स्वतंत्र राज्यों में बाँट दिया।
🧭 प्रशासन और समाज
बहमनी प्रशासन दिल्ली सल्तनत की तर्ज पर था —
वज़ीर (प्रधान मंत्री) प्रशासन की रीढ़ थे।
सैन्य तंत्र सुसंगठित था।
राजस्व व्यवस्था में जमीन की माप और कर वसूली का महत्व था।
शिक्षा और संस्कृति में फारसी, अरबी और स्थानीय भाषाओं का संगम हुआ।
🕌 सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान
बहमनी शासकों ने दक्कन को इस्लामी स्थापत्य और कला का केंद्र बना दिया।
गुलबर्गा की जामा मस्जिद,
बीदर का महमूद गवाँ मदरसा,
और बीजापुर की गोल गुम्बज (बाद के अदिलशाही काल की विरासत)
आज भी उस युग की शानदार वास्तुकला के प्रमाण हैं।
बहमनी काल में हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक मिश्रण हुआ — संगीत, चित्रकला और वास्तुकला में "दक्कनी शैली" उभरी।
⚖️ पतन और दक्कन के पाँच राज्य
बहमनी सल्तनत का पतन 15वीं शताब्दी के अंत में हुआ।
राज्य के भीतर अफाकी और दक्कनी सरदारों के संघर्ष के कारण यह पाँच भागों में विभाजित हो गया:
1. बीजापुर – अदिलशाही वंश
2. अहमदनगर – निज़ामशाही वंश
3. गोलकुंडा – कुतुबशाही वंश
4. बिदर – बरिदशाही वंश
5. बेरार – इमादशाही वंश
इन पाँचों को मिलाकर “दक्कन के पाँच राज्य” कहा गया।
बाद में ये राज्य आपस में संघर्ष करते रहे, परंतु दक्षिण भारत की राजनीति को कई दशकों तक नियंत्रित करते रहे।
📜 बहमनी सल्तनत की विरासत
बहमनी सल्तनत ने:
दक्कनी संस्कृति की नींव रखी,
स्थापत्य और साहित्य को समृद्ध किया,
और भारत की विविधता में एकता का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया।
🧩 निष्कर्ष
बहमनी सल्तनत ने दक्कन को एक राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान दी।
यहां से उपजे राज्यों ने दक्षिण भारत के इतिहास को आकार दिया —
और आज भी उनके किले, मस्जिदें और साहित्य उस स्वर्ण युग की गवाही देते हैं।
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