जानिए चंदेल वंश का इतिहास और खजुराहो मंदिरों की अद्भुत कला, स्थापत्य और विश्व धरोहर के रहस्य। पढ़ें यह विस्तृत लेख @HistoryDayIN.
✍ परिचय
भारतीय इतिहास में मध्यकाल के अनेक वंशों ने अपनी छाप छोड़ी। इनमें से बुंदेलखंड क्षेत्र के चंदेल वंश का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। चंदेल शासकों ने न केवल अपने साहस और प्रशासनिक कुशलता से पहचान बनाई, बल्कि खजुराहो मंदिर समूह जैसे अद्वितीय स्थापत्य चमत्कार रचे। आज ये मंदिर UNESCO विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) हैं और भारत की सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक माने जाते हैं।
🏰 चंदेल वंश का इतिहास
चंदेल वंश की उत्पत्ति 9वीं शताब्दी में बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश) में हुई।
इस वंश के संस्थापक नन्नुक (Nannuka) माने जाते हैं।
10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच चंदेलों का शासन अपने चरम पर था।
उनके प्रमुख शासक यशोवर्मन, धंग, कीर्तिवर्मन और विद्याधर थे।
चंदेल शासकों ने कला, स्थापत्य और धर्म का संरक्षण किया।
🛕 खजुराहो मंदिर समूह
खजुराहो के मंदिर 950 ई. से 1050 ई. के बीच निर्मित हुए।
यह समूह 85 मंदिरों से मिलकर बना था, जिनमें से आज लगभग 25 मंदिर शेष हैं।
ये मंदिर मुख्यतः शिव, विष्णु और जैन धर्म को समर्पित हैं।
मंदिरों की मूर्तिकला जीवन के विविध पक्षों को दर्शाती है — धार्मिक, सामाजिक, प्रेम, नृत्य और युद्ध।
🌍 स्थापत्य विशेषताएँ
1. नागर शैली – ऊँचे शिखर और मंडप।
2. पत्थर की नक्काशी – देवी-देवताओं, अप्सराओं और नृत्य मुद्राओं की सुंदर आकृतियाँ।
3. कला और कामशास्त्र – मंदिरों की बाहरी दीवारों पर कामशास्त्र से संबंधित मूर्तियाँ, जो मानव जीवन के संपूर्ण दर्शन को दर्शाती हैं।
⭐ प्रमुख मंदिर
कंदारिया महादेव मंदिर – शिव को समर्पित, सबसे विशाल और भव्य।
लक्ष्मण मंदिर – विष्णु को समर्पित, उत्कृष्ट मूर्तिकला।
चित्रगुप्त मंदिर – सूर्य देवता को समर्पित।
पार्श्वनाथ मंदिर – जैन मंदिर समूह का सबसे प्रसिद्ध मंदिर।
📖 खजुराहो और कला का संदेश
खजुराहो केवल धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन की संपूर्णता को दर्शाता है। यहाँ की मूर्तियाँ बताती हैं कि जीवन केवल तप और त्याग का नहीं, बल्कि आनंद, कला और प्रेम का भी संगम है।
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