जानिए सम्राट हर्षवर्धन के जीवन, उनके साम्राज्य, राजनीति, संस्कृति और धर्म के योगदान के बारे में। हर्षवर्धन का शासनकाल भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय माना जाता है।
परिचय
भारतीय इतिहास में गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ। इन्हीं परिस्थितियों में एक महान शासक ने उत्तर भारत को एक बार फिर एकजुट किया – सम्राट हर्षवर्धन (606 ई.–647 ई.)। उनका शासनकाल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।
हर्षवर्धन का प्रारंभिक जीवन
हर्ष का जन्म लगभग 590 ईस्वी के आसपास थानेसर (वर्तमान हरियाणा) में हुआ। वे वर्धन वंश से थे। उनके पिता प्रभाकरवर्धन एक पराक्रमी शासक थे। हर्ष के भाई राज्यवर्धन की हत्या और बहन राज्यश्री की कठिनाइयों ने हर्ष को राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने पर मजबूर किया।
साम्राज्य की स्थापना
606 ईस्वी में हर्ष ने 16 वर्ष की आयु में गद्दी संभाली। धीरे-धीरे उन्होंने उत्तर भारत के बड़े हिस्से को एकीकृत किया –
पंजाब
उत्तर प्रदेश
बिहार
बंगाल का कुछ हिस्सा
ओडिशा तक का क्षेत्र
हालाँकि, दक्षिण में उन्हें चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय से पराजय मिली।
प्रशासन और राजनीति
हर्ष का शासन अत्यंत संगठित और न्यायपूर्ण था।
उन्होंने करों की व्यवस्था को सरल बनाया।
जनता से सीधा संवाद रखते थे।
सैनिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में संतुलन बनाकर रखा।
धर्म और संस्कृति
हर्ष बौद्ध धर्म से अत्यधिक प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने अन्य धर्मों का भी सम्मान किया।
बौद्ध सभाओं का आयोजन किया।
चीनी यात्री ह्वेनसांग उनके दरबार में आया और उनके शासन की सराहना की।
कला, साहित्य और शिक्षा को बढ़ावा दिया।
साहित्य और हर्षवर्धन
हर्ष स्वयं भी एक लेखक थे।
उन्होंने संस्कृत नाटकों की रचना की – रत्नावली, प्रियदर्शिका, और नागानंद।
उनके दरबार में बाणभट्ट जैसे महान लेखक थे, जिन्होंने हर्षचरित लिखा।
शिक्षा और विश्वविद्यालय
हर्ष ने शिक्षा को बढ़ावा दिया।
नालंदा विश्वविद्यालय को संरक्षण दिया।
विद्वानों और संतों का आदर किया।
विदेशी यात्रियों को सुरक्षा और सहयोग प्रदान किया।
हर्ष का स्वर्णिम काल
हर्ष के शासनकाल में –
साहित्य और कला का उत्कर्ष हुआ।
धर्मों के बीच सहिष्णुता बनी रही।
जनता अपेक्षाकृत समृद्ध और सुरक्षित रही।
हर्षवर्धन का अंत
647 ईस्वी में हर्ष का निधन हुआ। उनकी मृत्यु के बाद वर्धन वंश का तेज़ी से पतन हो गया क्योंकि उनका कोई सक्षम उत्तराधिकारी नहीं था।
निष्कर्ष
सम्राट हर्षवर्धन को भारत का अंतिम महान शासक कहा जाता है, जिन्होंने एक बार फिर उत्तर भारत को एकजुट कर स्वर्णिम युग की नींव रखी। उनकी नीतियाँ, साहित्यिक योगदान और धार्मिक सहिष्णुता आज भी हमें प्रेरित करती हैं।
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