गुरुवार, 21 अगस्त 2025

इतिहास के झरोखे से: भारत की पुरानी तांबे की मुद्राएं और सिक्के

भारत की पुरानी तांबे की मुद्राएं और सिक्के भारतीय इतिहास की अनमोल धरोहर हैं। जानिए पंच-चिह्नित सिक्कों से लेकर मुगलकालीन तांबे की मुद्राओं तक का सफर और उनका महत्व।



प्रस्तावना

भारत का इतिहास केवल राजाओं और युद्धों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन का भी दर्पण है। सिक्के और मुद्राएं इस इतिहास की अनमोल धरोहर हैं, क्योंकि इनमें उस समय की कला, शिल्प, शासन और धार्मिक मान्यताओं की झलक दिखाई देती है।
तांबे (Copper) की मुद्राएं विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये आम जनता के दैनिक लेन-देन में सबसे ज़्यादा उपयोग की जाती थीं।


📜 प्राचीन भारत में तांबे की मुद्राएं

भारत में सबसे पहले सिक्कों का प्रयोग मौर्य काल (4वीं शताब्दी ईसा पूर्व) से शुरू हुआ माना जाता है। इन सिक्कों को ‘पंच-चिह्नित सिक्के’ (Punch Marked Coins) कहा जाता है।

ये सिक्के चांदी और तांबे से बनाए जाते थे।

तांबे के सिक्के साधारण जनता के लिए अधिक प्रचलित थे।

इन पर सूर्य, वृक्ष, पशु-पक्षी और धार्मिक प्रतीकों की आकृतियाँ अंकित होती थीं।


👉 तांबे की मुद्राओं ने उस समय के स्थानीय व्यापार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चलाने में अहम भूमिका निभाई।


🏺 गुप्तकाल और मध्यकालीन तांबे के सिक्के

गुप्तकाल (4th–6th Century CE) को भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस समय सोने के सिक्के प्रसिद्ध हुए, लेकिन आम जनता के लेन-देन में तांबे के सिक्कों का ही अधिक प्रयोग होता रहा।

दिल्ली सल्तनत और मुगल काल में भी तांबे के सिक्के (फुलूस/दम) बड़े पैमाने पर प्रचलित रहे।

अकबर और औरंगज़ेब के शासनकाल में तांबे के सिक्कों पर अरबी/फ़ारसी लिपि और धार्मिक उद्धरण भी देखने को मिलते हैं।


⚖️ आर्थिक और सामाजिक महत्व

1. व्यापार का आधार – तांबे की मुद्राएं छोटे व्यापारियों और किसानों के लिए उपयोगी थीं।


2. मूल्य निर्धारण – बड़े लेन-देन सोने-चांदी में और छोटे लेन-देन तांबे के सिक्कों में होते थे।


3. लोकप्रियता – तांबा सस्ता और आसानी से उपलब्ध धातु थी, इसलिए इसकी मुद्राएं आम लोगों तक पहुँच पाती थीं।


4. ऐतिहासिक स्रोत – आज इतिहासकार और पुरातत्वविद् इन्हीं सिक्कों के आधार पर उस समय की भाषा, धर्म और कला का अध्ययन करते हैं।


🔍 तांबे की पुरानी मुद्राओं की पहचान

पुरानी तांबे की मुद्राएं पहचानने के लिए कुछ बिंदु महत्वपूर्ण होते हैं –

सिक्के पर अंकित प्रतीक/चिह्न

उपयोग की गई लिपि (ब्राह्मी, नागरी, फ़ारसी)

सिक्के का वजन और आकार

धातु की शुद्धता और रंग


🌍 संग्रहण और आज का महत्व

आज भी कई लोग न्यूमिस्मैटिक्स (Numismatics – सिक्कों का अध्ययन और संग्रह) को शौक और निवेश के रूप में अपनाते हैं।

पुरानी तांबे की मुद्राएं Antique Value रखती हैं।

भारत और विदेशों में कॉइन ऑक्शन (Coin Auction) में ये हजारों से लाखों रुपये तक की बोली में बिकती हैं।

ऐतिहासिक और शैक्षिक दृष्टि से भी इनका महत्व अमूल्य है।


निष्कर्ष

भारत की पुरानी तांबे की मुद्राएं न केवल आर्थिक लेन-देन का साधन थीं, बल्कि वे उस समय की संस्कृति, धर्म और कला की झलक भी प्रस्तुत करती हैं। ये सिक्के हमारे इतिहास के ऐसे साक्षी हैं, जिन्हें संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।

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