मंगलवार, 12 अगस्त 2025

विजयनगर साम्राज्य का स्वर्णिम युग: कृष्णदेव राय का गौरवशाली शासन (1509–1529)





परिचय

विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का एक ऐसा सुनहरा युग था, जिसने न केवल सैन्य विजय प्राप्त की, बल्कि कला, साहित्य, प्रशासन और स्थापत्य के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व उत्कर्ष देखा. इस साम्राज्य के सबसे महान शासकों में से एक, कृष्णदेव राय (1509–1529), ने विजयनगर को उसकी चरम उन्नति तक पहुंचाया. इस लेख में, हम देखेंगे कि कैसे उनका शासन विजयनगर को समृद्धि, शक्ति और सांस्कृतिक प्रतिभा का केन्द्र बना और क्यों उन्हें दक्षिण भारत का सबसे गौरवशाली सम्राट माना जाता है.


1. विजयनगर साम्राज्य: एक संक्षिप्त परिचय

विजयनगर साम्राज्य (1336–1646) दक्षिण भारत का एक प्रभावशाली हिंदू साम्राज्य था, जिसकी राजधानी भीमपुरा (हंपी) थी . इसकी स्थापना संगम वंश द्वारा की गई थी और इसका चरम उत्कर्ष कृष्णदेव राय के शासनकाल में हुआ. उस दौरान, विजयनगर ने पूरे दक्षिण भारत, गोवा, आंध्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, और केरल के कुछ हिस्सों तक अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था .



2. सैन्य विजय और साम्राज्य विस्तार

कृष्णदेव राय की सैन्य सफलता उनकी दूरदर्शिता और रणनीति की कहानी कहती है:

Battle of Diwani (1509): शासन के आरंभ में ही उन्होंने बहमनी सल्तनत को हराकर विजय सुनिश्चित की। यह उनके शासनकाल की पहली बड़ी सफलता थी .

Raichur Doab पर विजय (1512): कृष्णदेव राय ने रायचूर क्षेत्र पर कब्ज़ा जमाया और बेज़ापुर सल्तनत को पराजित किया .

ओडिशा (गजपति साम्राज्य) पर आक्रमण (1514): उन्होंने गजपति वंश को परास्त किया और आंध्र के तटीय क्षेत्रों का शामिल कर लिया, इसके बाद उन्होंने गजपति राजा से शादी भी की .

Raichur युद्ध (1520): यह उनका सबसे प्रसिद्ध युद्ध था। विजयनगर सेनाओं ने आदिलशाह की सेना को करारी मात दी. विजय ने साम्राज्य को मजबूत किया और सीमाओं को विस्तारित किया .


कृष्णदेव राय ने दक्षता, रणनीति और सैन्य कौशल का अद्भुत मेल दिखाया, जिसने विजयनगर को बड़ी ताकत बना दिया.


3. प्रशासनिक सुधार और आर्थिक समृद्धि

वे ना केवल विजेता थे, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी:

उन्होंने अवांछित करों—जैसे विवाह शुल्क—को समाप्त कर लोगों को राहत दी .

कृषि विकास के लिए व्यापक जल प्रबंधन, काल-जलाशय और नहरों का निर्माण कराया. उन्होंने कृषि योग्य जमीन बढ़ाने के लिए वनों का दोहन भी किया .

पर्याप्त उपायों से कर एकत्रण और किसान कल्याण पर ध्यान देते हुए उन्होंने "धर्म के अनुसार शासन" की अवधारणा को अपनाया .

विदेशी यात्री—डोमिंगो पाएस, बारबोसा आदि—उस काल की आर्थिक समृद्धि और प्रशासकीय अनुशासन की प्रशंसा कर चुके हैं .



4. सांस्कृतिक और साहित्यिक पुनर्जागरण

कृष्णदेव राय का शासन विजयनगर को सांस्कृतिक केन्द्र बन गया:

स्वयं कवि थे – उन्होंने तेलुगु में Amuktamalyada महाकाव्य रचा, जिसमें रामानंद और गोवर्धन की दैवीय प्रेम कथा का वर्णन है और साथ ही यह राजनीतिक नीति निर्देशित करने वाला ग्रंथ भी है .

उनके दरबार में अष्टदिग्गज (आठ महान तेलुगु कवि) थे—Allasani Peddana, Tenali Ramakrishna, Pingali Surana इत्यादि—जिन्होंने तेलुगु साहित्य को शिखर पर पहुंचाया .

विजयनगर स्थापत्य शैली ने कृष्णदेव राय के युग में खासी ऊँचाई प्राप्त की. "राया-गोपुरम" जैसी स्थापत्य शैलियाँ लोकप्रिय हुईं, और मंदिरों में यालि, संगीत स्तंभ, विस्तृत मंडप आदि सजावट की गई .

Ananthasayana Temple (1524) का निर्माण उन्होंने अपने पुत्र की याद में करवाया, जो हंपी में है और अब यूनेस्को विश्व धरोहर का हिस्सा है .



5. समर्पण, धर्म और जन-कल्याण

कृष्णदेव राय के शासन में “राजा धर्म” की अवधारणा विशेष थी:

उन्होंने धर्म-निर्देशित शासन की नीति अपनाई—इसमें राजा का कर्तव्य था कि वह न्याय करे, गरीबों का कल्याण करे, कर कम हो; किसानों को उपयुक्त दर पर भूमि पट्टे पर दी जाए .

वे प्रतिवर्ष अपनी राजधानी और प्रांतों की भ्रमण यात्रा करते थे जिससे वे जन-समस्याएँ स्वयं सुनते और सही करते थे .

यात्रियों द्वारा वर्णित उनकी उदारता, न्यायप्रियता और जनता-मुखी शासन की सराहना दर्शाती थी .



निष्कर्ष: गौरवशाली शासन की विरासत

कृष्णदेव राय का शासन विजयनगर साम्राज्य के लिए स्वर्णिम युग था — एक ऐसा युग जब सैन्य विजय, आर्थिक समृद्धि, स्थापत्य कौशल और साहित्यिक उत्कर्ष सभी एक साथ फलित हुए. उनके शासन ने विजयनगर को न केवल दक्षिण भारत की सर्वश्रेष्ठ शक्ति बनाया, बल्कि उसकी सांस्कृतिक पहचान को भी नया आयाम दिया. वे आज भी “आदर्श राजा” के रूप में याद किए जाते हैं — क्योंकि उन्होंने युद्ध, कल्याण, धर्म और कला—इन सभी क्षेत्रों में अधर्य संतुलन दिखाया.



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आप इस काल की महानता का और गहराई से अनुभव करें — चाहे वह यात्रा हो, पढ़ाई हो या सिर्फ जिज्ञासा. विजयनगर के गौरवशाली दिनों ने ऐसा स्वर्णिम धागा बुना है, जिसे आज भी प्रेम से याद किया जाता है।

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