रविवार, 27 जुलाई 2025

भारतीय संविधान का निर्माण और डॉ. भीमराव अंबेडकर की ऐतिहासिक भूमिका


प्रस्तावना

भारत का संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मूल्यों का आधार भी है। यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समानता और सामाजिक न्याय जैसे सिद्धांतों का समावेश है। इस संविधान के निर्माण में अनेक विद्वानों ने योगदान दिया, लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका सबसे विशेष और निर्णायक रही। उन्हें "भारतीय संविधान के वास्तुकार" (Architect of Indian Constitution) के रूप में सम्मानित किया गया है।


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संविधान निर्माण की पृष्ठभूमि

ब्रिटिश शासन के अंतिम वर्षों में भारत के लिए एक स्थायी संविधान की आवश्यकता महसूस की गई। 1946 में संविधान सभा (Constituent Assembly) का गठन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से चुने गए प्रतिनिधि शामिल हुए।

संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। कुल 389 सदस्यों वाली इस सभा को देश के लिए एक ऐसा संविधान तैयार करना था जो विविधता में एकता, सामाजिक समरसता और कानून का राज सुनिश्चित कर सके।


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डॉ. भीमराव अंबेडकर का चयन

15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान प्रारूप समिति (Drafting Committee) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। यह समिति 29 अगस्त 1947 को गठित की गई थी। समिति में कुल 7 सदस्य थे, लेकिन अंबेडकर ही इसकी प्रेरक शक्ति थे।

उनके पास न केवल कानून का गहरा ज्ञान था, बल्कि वे समाज की गहराइयों से उठे हुए ऐसे नेता थे जो हर वर्ग, विशेष रूप से दलितों और पिछड़ों की पीड़ा को भली-भांति समझते थे।


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डॉ. अंबेडकर की प्रमुख योगदान

1. समानता का सिद्धांत

डॉ. अंबेडकर ने संविधान में सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार दिलाया। अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता के अधिकार की व्याख्या की गई है, जिसमें जाति, धर्म, लिंग या जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं करने की बात कही गई है।

2. अस्पृश्यता उन्मूलन

अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को पूरी तरह से अवैध और अपराध घोषित किया गया। यह डॉ. अंबेडकर की जीवनभर की लड़ाई का कानूनी परिणाम था।

3. आरक्षण व्यवस्था

उन्होंने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण व्यवस्था का प्रस्ताव दिया, जिससे दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में बराबरी मिल सके।

4. धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता

डॉ. अंबेडकर ने धर्म की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25–28) का समर्थन किया, जिससे हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और पालन करने का अधिकार मिला।

5. महिलाओं के अधिकार

उन्होंने महिलाओं के समान अधिकारों के लिए भी आवाज़ उठाई। उनका मानना था कि बिना महिला सशक्तिकरण के कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता।


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संविधान निर्माण की प्रक्रिया

1. सम्भावनाओं और चर्चाओं से भरा सफर

संविधान के मसौदे को बनाने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे। इसमें 11 सत्र और 165 दिन चर्चा हुई। डॉ. अंबेडकर हर बहस में भाग लेते रहे और जटिल मुद्दों पर समाधान प्रस्तुत करते रहे।

2. संविधान का अंगीकरण

26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को स्वीकृत किया। यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।


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डॉ. अंबेडकर की दूरदर्शिता

डॉ. अंबेडकर केवल एक कानूनी विशेषज्ञ नहीं थे, वे एक दूरदर्शी समाज सुधारक थे। उनका मानना था कि "राजनीतिक लोकतंत्र तब तक अधूरा है जब तक सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र ना हो।" उनका संविधान सामाजिक न्याय की नींव पर खड़ा है।

उन्होंने संविधान सभा में अंतिम भाषण में कहा था:

 "Constitution is not a mere lawyer's document, it is a vehicle of life, and its spirit is always the spirit of age."




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आलोचना और चुनौती

संविधान के कुछ प्रावधानों को लेकर डॉ. अंबेडकर को आलोचना का सामना भी करना पड़ा। कुछ लोगों को लगा कि उन्होंने पश्चिमी मॉडल की नकल की है, लेकिन अंबेडकर ने हर आलोचना का जवाब तर्क और विवेक से दिया। उन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए संविधान में संतुलन बनाया।


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निष्कर्ष

डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान केवल संविधान के निर्माण तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने भारत को सामाजिक न्याय, समानता और स्वतंत्रता की ओर अग्रसर करने में एक मजबूत नींव रखी। उनका जीवन प्रेरणा है कि कैसे एक व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी राष्ट्र के इतिहास को बदल सकता है।

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