शुंग वंश का आरंभ
परिचय
भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य का पतन और उसके बाद उत्पन्न हुई राजनैतिक स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। मौर्य वंश की समाप्ति के बाद भारत के इतिहास में शुंग वंश (Shunga Dynasty) का उदय हुआ। यह वंश न केवल एक नए युग की शुरुआत लेकर आया, बल्कि हिंदू धर्म और ब्राह्मण संस्कृति के पुनरुत्थान का भी प्रतीक बना। इस ब्लॉग पोस्ट में हम विस्तार से जानेंगे कि शुंग वंश की स्थापना कैसे हुई, इसके प्रमुख शासक कौन थे, इस वंश की उपलब्धियाँ क्या रहीं और अंततः इसका पतन कैसे हुआ।
मौर्य वंश का अंत और शुंग वंश का उदय
मौर्य साम्राज्य की नींव चंद्रगुप्त मौर्य ने रखी थी और उसका विस्तार अशोक महान तक हुआ। लेकिन अशोक की मृत्यु के बाद साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होता गया। अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ मौर्य (Brihadratha Maurya) एक कमजोर शासक थे। उनके शासनकाल में साम्राज्य में अराजकता फैल गई और केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई।
इसी समय उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग (Pushyamitra Shunga) ने एक षड्यंत्र रचा और बृहद्रथ की हत्या कर दी। यह घटना लगभग 185 ई.पू. की मानी जाती है। इसके बाद पुष्यमित्र ने स्वयं को राजा घोषित कर शुंग वंश की स्थापना की।
शुंग वंश की स्थापना
पुष्यमित्र शुंग एक ब्राह्मण थे और वे मौर्य सेना में उच्च पद पर कार्यरत थे। उन्होंने न केवल सत्ता हथियाई, बल्कि एक नई राजनीतिक और सांस्कृतिक दिशा भी तय की। उन्होंने बौद्ध धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया।
उनकी राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) थी। शुंग वंश की स्थापना से एक नई राजनीतिक व्यवस्था की शुरुआत हुई, जहाँ ब्राह्मणों की सत्ता और संस्कृति को फिर से महत्व मिलने लगा।
पुष्यमित्र शुंग का शासन (185 ई.पू. - 149 ई.पू.)
पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण रहा:
1. विद्रोहों का दमन: मौर्य वंश के पतन के बाद विभिन्न प्रांतों में विद्रोह भड़क उठे थे। पुष्यमित्र ने कुशलता से इन विद्रोहों को दबाया और साम्राज्य को संगठित किया।
2. यवन आक्रमणों का प्रतिकार: उनके काल में उत्तर-पश्चिम भारत पर यूनानी (Indo-Greeks) आक्रमणकारी हमला कर रहे थे। पुष्यमित्र ने मध्य भारत की रक्षा की और यूनानियों को पराजित किया।
3. हिंदू धर्म का पुनरुत्थान: पुष्यमित्र ने वैदिक धर्म, वेदपाठ, यज्ञ और ब्राह्मण परंपरा को पुनर्जीवित किया। कहा जाता है कि उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का भी आयोजन किया था।
4. बौद्ध धर्म के प्रति रुख: कुछ ग्रंथों में उल्लेख है कि पुष्यमित्र ने बौद्धों पर अत्याचार किए और उनके विहारों को नष्ट किया। हालांकि, इसके प्रमाण विवादास्पद हैं।
शुंग वंश के अन्य शासक
पुष्यमित्र के बाद उसके पुत्र अग्निमित्र शुंग ने सत्ता संभाली। अग्निमित्र का नाम कालिदास की प्रसिद्ध संस्कृत नाटक "मालविकाग्निमित्रम्" में भी मिलता है।
शुंग वंश के अन्य शासकों में:
वसुमित्र
वसजेष्ठ
भागवत
देवभूति (अंतिम शुंग शासक)
इन शासकों का शासन अधिक स्थिर नहीं रहा। धीरे-धीरे शुंग साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।
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शुंग वंश की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
1. कला और स्थापत्य: शुंग काल में कला और वास्तुकला को बढ़ावा मिला। भारहुत स्तूप (Bharhut Stupa) और सांची स्तूप का पुनर्निर्माण इसी काल में हुआ।
2. संस्कृत साहित्य: कालिदास जैसे महान कवि इसी काल के आसपास सक्रिय थे, यद्यपि उनके काल को लेकर मतभेद हैं।
3. धार्मिक पुनरुत्थान: वैदिक धर्म, ब्राह्मण संस्कृति और यज्ञों की परंपरा को पुनर्जीवित किया गया। यह काल हिंदू पुनरुत्थान के रूप में भी जाना जाता है।
शुंग वंश का पतन
शुंग वंश की समाप्ति लगभग 73 ई.पू. में हुई। अंतिम शुंग सम्राट देवभूति एक दुर्बल शासक थे, जिन्हें उनके मंत्री वासुदेव कण्व ने अपदस्थ कर दिया। इसके बाद कण्व वंश (Kanva Dynasty) का उदय हुआ।
शुंग वंश का ऐतिहासिक महत्व
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद जो राजनीतिक रिक्तता थी, उसे शुंग वंश ने भरा।
शुंग वंश ने हिंदू धर्म को पुनः जागृत किया और ब्राह्मण परंपरा को सत्ता के केंद्र में लाया।
यह वंश भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण का भी प्रतीक बना – जहाँ बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने लगा और वैदिक परंपरा पुनः मजबूत हुई।
शुंग शासकों ने यवन आक्रमणों को रोका और भारतीय संस्कृति की रक्षा की।
निष्कर्ष
शुंग वंश का आरंभ भारतीय इतिहास में एक संक्रमण काल का प्रतीक है। यह वंश भले ही अधिक समय तक नहीं चला, लेकिन इसने एक मजबूत सांस्कृतिक और धार्मिक छाप छोड़ी। पुष्यमित्र शुंग के साहसिक नेतृत्व ने न केवल राजनीतिक स्थिरता प्रदान की, बल्कि एक नए युग की नींव भी रखी।
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