बिंदुसार (298–273 ई.पू.) – मौर्य सम्राट जिन्होंने साम्राज्य को स्थिरता दी
परिचय: बिंदुसार मौर्य साम्राज्य के दूसरे सम्राट थे। वे चंद्रगुप्त मौर्य और मौर्य वंश के संस्थापक के पुत्र थे। उनका शासनकाल लगभग 25 वर्षों तक चला (298 ई.पू. से 273 ई.पू. तक)। उन्होंने अपने पिता द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य को न केवल संभाला, बल्कि उसे स्थिरता भी प्रदान की।
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मुख्य जानकारी एक नजर में:
🔹 पूरा नाम: बिंदुसार मौर्य
🔹 पिता: चंद्रगुप्त मौर्य
🔹 पुत्र: अशोक मौर्य (आगे चलकर सम्राट अशोक बने)
🔹 राज्यकाल: 298–273 ई.पू.
🔹 राजधानी: पाटलिपुत्र
🔹 धर्म: आजीविक धर्म के अनुयायी (कुछ ग्रंथों के अनुसार)
🔹 उपनाम: "अमित्रघात" (शत्रुओं का संहारक – यूनानी स्रोतों में उल्लेख)
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बिंदुसार का शासनकाल:
1. 🔸 राजनीतिक स्थिरता:
बिंदुसार ने मौर्य साम्राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक नींव को मज़बूती से संभाला। उन्होंने साम्राज्य में विद्रोह या विभाजन नहीं होने दिया।
2. 🔸 दक्षिण भारत में प्रभाव:
कई ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं कि बिंदुसार ने दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों को अपने अधीन किया था। हालांकि, कलिंग को वह अपने साम्राज्य में शामिल नहीं कर पाए थे।
3. 🔸 यूनानी संपर्क:
यूनानी इतिहासकारों जैसे स्ट्रैबो और डीओडोरस के अनुसार, बिंदुसार ने सेल्यूकस के उत्तराधिकारी ऐंटीऑकस I से कूटनीतिक संबंध बनाए रखे और विदेशी वस्तुओं की मांग की — जैसे शराब, अंजीर और दार्शनिक।
4. 🔸 धार्मिक सहिष्णुता:
बिंदुसार के शासनकाल में विभिन्न धर्मों को सहनशीलता मिली। ऐसा कहा जाता है कि वे आजीविक संप्रदाय से प्रभावित थे।
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उत्तराधिकारी और मृत्यु:
बिंदुसार की मृत्यु 273 ई.पू. में हुई। उनके बाद उनके पुत्र अशोक मौर्य ने गद्दी संभाली, जो बाद में मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध सम्राट बने।
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निष्कर्ष:
बिंदुसार का शासनकाल युद्धों की अपेक्षा प्रशासनिक दक्षता और साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करने के लिए जाना जाता है। वे एक ऐसे सम्राट थे जिन्होंने चंद्रगुप्त द्वारा बनाई गई विरासत को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया और अशोक के लिए एक मजबूत नींव रखी।
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