श्री गुलज़ारीलाल नंदा (4 जुलाई 1898 – 15 जनवरी 1998) एक भारतीय राजनेता और अर्थशास्त्री थे, जो दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
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🧒 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गुलज़ारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को सियालकोट (तत्कालीन ब्रिटिश भारत, अब पाकिस्तान) में एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। उन्होंने लाहौर, आगरा और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की। 1921 में उन्होंने बॉम्बे के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।
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🇮🇳 स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सेवा
नंदा 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और 1922 से 1946 तक अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के सचिव के रूप में कार्य किया। उन्हें 1932 और 1942-44 के दौरान सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों और कल्याण के लिए आजीवन कार्य किया।
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🏛️ राजनीतिक जीवन
1950: योजना आयोग के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए।
1951: भारत सरकार में योजना, सिंचाई और ऊर्जा मंत्री बने।
1957: लोकसभा के लिए चुने गए और श्रम, रोजगार और योजना मंत्री बने।
1963-1966: गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।
उन्होंने 1962 और 1967 में गुजरात के साबरकांठा निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सदस्य के रूप में सेवा की।
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👔 कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
नंदा दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने, दोनों बार 13 दिनों के लिए:
1. 27 मई 1964 से 9 जून 1964: पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद।
2. 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966: लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद।
दोनों बार, उन्होंने स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब तक कि कांग्रेस पार्टी ने नए प्रधानमंत्री का चयन नहीं किया।
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🏅 सम्मान और विरासत
1997: भारत रत्न से सम्मानित किए गए।
उन्होंने अपने जीवन में कभी भी सत्ता या पद का दुरुपयोग नहीं किया और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया। उनकी ईमानदारी और निष्ठा के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।
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🕊️ निधन
15 जनवरी 1998 को अहमदाबाद, गुजरात में 99 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। वे 20वीं सदी के अंतिम जीवित भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे।
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श्री गुलज़ारीलाल नंदा का जीवन हमें यह सिखाता है कि सादगी, ईमानदारी और सेवा भाव से भी महान नेतृत्व संभव है।
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